केदारनाथ का क्या है रहस्य जाने

जब भी भारत के तीर्थ स्थलों का नाम लिया जाता है तो उसमें केदारनाथ धाम का नाम मुख्य रूप से लिया जाता है। भगवान शिव का यह भव्य ज्योतिर्लिंग धाम हिमालय की गोद में उत्तराखंड में स्थित है। भगवान शिव का यह केदारनाथ धाम केवल भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग की श्रृंखला में ही नहीं बल्कि भारत और उत्तराखंड के चार धाम और पंच केदार की श्रृंखला में भी गिना जाता है।

भगवान शिव पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वह अंतर्धान होकर केदार आ पहुंचे। पांडव भी उनका पीछा करते-करते केदार आ पहुंचे। उनसे छिपने के लिए भगवान शिव बैल बन गए और अन्‍य जानवरों के बीच में छिप गए। भीम ने इस बात को भांप लिया और विशालकाय रूप में आ गए और दो पहाड़ों के बीच में अपने दोनों पैर रख लिए। अन्‍य जानवर भीम के पैरों के बीच से निकल गए लेकिन बैल के रूप में भगवान शिव पैर के नीचे से नहीं गए। भीम को समझ आ गया और उन्‍होंने बैल की पीठ का त्रिकोण भाग पकड़ लिया। पांडवों की शक्ति और दृढ़ संकल्‍प ने भगवान शिव का मन बदल दिया और उन्‍होंने दर्शन देकर पांडवों को पाप से मुक्‍त किया। उसी समय से यहां शिवलिंग बैल की पीठ की आकृति के रूप में पूजा जाता है।

पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि जब भगवान शिव बैल के रूप में आए तो उनके धड़ का भाग काठमांडू में प्रकट हुआ, जहां अब पशुपतिनाथ मंदिर है। शिवजी की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मद्महेश्‍वर में और जटा कल्‍पेश्‍वर में प्रकट हुई। इन चार स्‍थानों के साथ केदारनाथ धाम को मिलाकर पंचकेदार के रूप में पूजा जाता है।

 

तुंगनाथ मंदिर

‘तुंगनाथ’ उत्‍तराखंड के गढ़वाल के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित एक पर्वत है। इसी पर्वत पर स्थित है ‘तुंगनाथ मंदिर।’ यह भोलेनाथ के पंच केदारों में से एक है। यहां के बारे में यह भी मान्‍यता है कि माता पार्वती ने भी शिव को पाने के लिए यहीं पर तपस्‍या की थी। तुंगनाथ मंदिर समुद्र तल से 3680 मीटर की ऊंचाई पर है। यहां भगवान शिव के हृदयस्थल और शिव की भुजा की आराधना होती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार कुरुक्षेत्र के मैदान में पांडव के हाथों काफी बड़ी संख्या में नरसंहार से भगवान शिव पांडवों से रुष्ट हो गए। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए पांडवों ने मंदिर का निर्माण कराया।

रुद्रनाथ मंदिर

रुद्रनाथ मंदिर उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में स्थित भगवान शिव का एक मंदिर है जो कि पंचकेदार में से एक है। समुद्रतल से 2290 मीटर की ऊंचाई पर स्थित रुद्रनाथ मंदिर भव्य प्राकृतिक छटा से परिपूर्ण है। रुद्रनाथ मंदिर में भगवान शंकर के एकानन यानि मुख की पूजा की जाती है। रुद्रनाथ मंदिर के सामने से दिखाई देती नंदा देवी और त्रिशूल की हिमाच्छादित चोटियां यहां का आकर्षण बढ़ाती हैं। यहां पूजे जाने वाले शिव जी के मुख को ‘नीलकंठ महादेव’ कहते हैं।

मद्महेश्‍वर मंदिर

मद्महेश्वर मंदिर, मद्महेश्वर नदी के स्रोत (मुख) के पास के इलाके में स्थित है। समुद्र तल से 3289 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर को दूसरे केदार के रूप में जाना जाता है। मद्महेश्‍वर मंदिर में भगवान शिव की पूजा नाभि लिंगम के रूप में होती है। मान्‍यता है कि यहां का जल इतना पवित्र है कि इसकी कुछ बूंदें ही मोक्ष के लिए पर्याप्‍त मानी जाती हैं। शीतकाल में छह माह यहां पर भी कपाट बंद होते हैं। मदमहेश्वर जाने के लिए रुद्रप्रयाग जिले में ऊखीमठ तक जाना होता है। रुद्रप्रयाग से बसें और जीपें मिलती हैं।

कल्‍पेश्‍वर मंदिर

कल्पेश्वर मंदिर गढ़वाल के चमोली जिले, उर्मगम घाटी, उत्तराखण्ड, भारत में स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक हिन्दू मंदिर है। कल्पेश्वर मंदिर पंच केदारों में से एक है तथा पंच केदारों में इस पांचवा स्‍थान है। जो समुद्र तल से 2,200 मीटर (7,217 फीट) की ऊंचाई पर बना हुआ है। कल्पेश्वर एकमात्र पंच केदार मंदिर है, जहां पूरे वर्ष भगवान के कपाट खुले रहते हैं। यह एक छोटा सा मंदिर जो पत्थर की गुफा में बना हुआ है ऐसा माना जाता है कि यहां भगवान शिव की जटा प्रकट हुई थी। इस मंदिर में भगवान शिव की ‘जटा’ की पूजा की जाती है।